जशपुर,6जनवरी(न्यूज हरियाणा)।
छत्तीसगढ़ में टमाटर का सबसे अधिक उत्पादन लेने वाले पत्थलगांव क्षेत्र के किसानों की बम्फर पैदावार के बाद उन्हें थोक खरीददार नहीं मिलने से अपनी टमाटर फसल को पानी के भाव पर बेचना पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य हैं जहां गोबर की खरीदी अभी 2 रुपये किलो में चल रही हैं, गौमूत्र की खरीदी 4 रुपये लीटर में चल रही हैं लेकिन टमाटर को 50 पैसे में भी खरीदने को कोई तैयार नही हैं.
जिले में टमाटर उपज का रकबा 10 हजार एकड़ से बढ़कर 17 हजार एकड़ से अधिक हो जाने के कारण बाजारों में चारों ओर केवल टमाटर के ही टोकरे दिखाई देते हैं, टमाटर की अधिक आवक होने से थोक सब्जी व्यापारियों द्वारा भाव घटा कर अब महज 50-60 पैसे प्रति किलो के भाव पर ही टमाटर की खरीदी की जा रही हैं.
फल उद्यान के अधिकारी पींगल कुजूर का कहना है कि किसानों को प्राकृतिक आपदा होने पर ही मदद देने का प्रावधान है, यंहा टमाटर उत्पादन का कम भाव का नुकसान से बचने के लिए किसानों को फसलचक्र में परिवर्तन के साथ टमाटर कैचअप बनाने की सलाह दी जा रही है.
दरअसल, अच्छा मुनाफा को देख कर किसानों द्वारा लगातार टमाटर फसल का रकबा मे बढ़ोत्तरी की जा रही है. लेकिन एक पखवाड़ा से यंहा टमाटर का भाव मे लगातार गिरावट के बाद अब पचास रुपये में 40 किलो टमाटर खरीदी की जा रही है.
पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओड़ीसा के थोक सब्जी व्यापारियों की यंहा कम रूचि के कारण किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य नहीं मिल रहा है.
खेतों से टमाटर की उपज को सब्जी मंडी में ले जाने के बाद मजदूरों का भुगतान भी नहीं मिल पाने से किसान अपनी फसल को खेतों में छोड़ने के लिए मजबूर हो रहें हैं. टमाटर के भाव में भारी गिरावट आ जाने से पत्थलगांव के किसानों ने टमाटर की फसल को खेतों में ही छोड़ दिया है.
पत्थलगांव, बगीचा और फरसाबहार विकासखंड में तीन सौ अधिक गांव में बीस हजार किसान टमाटर की दो फसल लेते हैं. दिसंबर जनवरी महिने में आने वाली दूसरी फसल के समय पड़ोसी राज्यों में भी टमाटर की फसल तैयार हो जाने से थोक व्यापारियों का पत्थलगांव लुड़ेग आना कम हो जाता है. इस वर्ष यंहा फिर से टमाटर का अधिक उत्पादन किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.
पत्थलगांव में लुड़ेग क्षेत्र के किसानों का कहना है कि इन दिनों सब्जी मंडी में टमाटर के थोक व्यापारी नदारद हो जाने से उनकी फसल खेतों में ही खराब हो रही है. टमाटर फसल के भाव में भारी गिरावट के कारण वे अपने मवेशियों को ही इस फसल को खिला रहे हैं.