भारत एक संप्रभुत्वसम्पन्न, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।

प्रस्तुति:- #शैलेन्द्रसिंहशैली
सवाल का मूलतत्त्व

यह एक साधारण-सा प्रश्न है जिसका उत्तर सिर्फ UPSC परीक्षार्थियों को ही नहीं अपितु सभी भारतीय को जानना चाहिए. प्रत्येक देश के संविधान की कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो वहाँ की समस्याओं और परिस्थितियों से उत्पन्न होती हैं. भारत का भी संविधान एक प्रस्तावना से आरम्भ होता है जिसमें प्रश्न में दिए दो शब्द पहले से दिए गये थे और दो शब्दों को बाद में जोड़े गये. इसलिए पहले paragraph में इसे स्पष्ट करें. उसके बाद क्रम से सभी की व्याख्या करें.

उत्तर

भारत का संविधान भारत को एक संप्रभुत्वसम्पन्न, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है. यह घोषणा भारत के संविधान की प्रस्तावना में ही कर दी गई है. भारत के संविधान की प्रस्तावना में पहले भारत को एक संप्रभुत्वसम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित किया गया था. लेकिन, संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत दो अन्य नए शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए – “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी”. इस प्रकार, भारत अब एक संप्रभुत्वसम्पन्न , धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया.

सम्प्रभुत्वसम्पन्न राज्य

यह सभी जानते हैं कि संप्रभुता राज्य का सबसे आवश्यक तत्त्व है. 1947 ई. में भारत स्वतंत्र हुआ और उसे सम्प्रभुता प्राप्त हुई. देश के लिए नया संविधान बना और भारत को सम्प्रभुत्वसम्पन्न राज्य घोषित किया गया. सम्प्रभुत्वसम्पन्न का अर्थ ही है कि भारत पूर्णतः स्वतंत्र है और वह किसी दूसरे देश के अधीन नहीं है. वह आंतरिक, बाह्य, आर्थिक, विदेश, गृह नीतियों को निर्धारित करने में पूर्ण स्वतंत्र है.

भारत राष्ट्रमंडल का सदस्य है. इस आधार पर बहुत-से आलोचकों ने यह आक्षेप लगाया कि भारत एक संप्रभु राज्य नहीं है. परन्तु इस आलोचना में कोई जान नहीं है. राष्ट्रमंडल की सदस्यता बनाए रखना या छोड़ देना भारत के विवेक पर निर्भर करता है.

धर्मनिरपेक्ष राज्य

संविधान में कहा गया है कि सभी नागरिकों को धर्म, विश्वास, पूजा इत्यादि में स्वतंत्रता होगी. सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, जिससे वे अपने धार्मिक विचारों का प्रचार स्वतंत्रतापूर्वक कर सकते हैं. धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ यह नहीं है कि राज्य नागरिकों को नास्तिक या अधर्मी बनाना चाहता है. इसका अर्थ यह है कि राज्य धार्मिक मामलों में तटस्थ रहेगा और किसी धर्म के साथ पक्षपात नहीं करेगा.

भारत में धर्म के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाता है. कुछ लोगों ने धर्म के आधार पर नौकरी में आरक्षण की वकालत की है परन्तु न्यायालय ने इस प्रकार की माँग को सदा असंवैधानिक बताया है. मुसलामानों और ईसाईयों को कुछ राज्यों में नौकरी में आरक्षण अवश्य मिला है पर यह आरक्षण उनके धर्म के नाम पर नहीं अपितु उनके पिछड़ेपन के कारण दिया गया है.

समाजवादी राज्य

भारत को पूँजीवादी देश न मानकर समाजवादी देशी माना गया. भारत को समाजवादी राज्य घोषित करने का प्रयास बहुत दिनों से होता आ रहा था. जवाहरलाल नेहरु ने समाजवादी समाज के ढाँचे (Socialistic Pattern of Society) की स्थापना का प्रयास किया था. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व के अंतर्गत भी कुछ ऐसे सिद्धांतों की चर्चा है जिनका उद्देश्य भारत में समाजवाद के मार्ग को प्रशस्त करना है. परन्तु, संविधान के 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में “समाजवादी/socialist” शब्द जोड़कर इस उद्देश्य को और भी स्पष्ट कर दिया गया.

लोकतंत्रात्मक राज्य

भारत का शासन जनता के प्रतिनिधि चलाते हैं और राज्य की राजनैतिक सम्प्रभुता जनता में निहित है. अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि “प्रजातंत्र में सरकार जनता की, जनता द्वारा और जनता की भलाई के लिए होती है”. यह बात भारतीय संविधान पर पूर्णतया लागू होती है. यहाँ जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि देश का शासन जनता की भलाई के लिए करते हैं.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top