प्रस्तुति:- #शैलेन्द्रसिंहशैली
भारत में नागरिकता
नागरिकता शब्द से उल्लेख है किसी भी समुदाय के पूर्ण सदस्यता का आनंद प्राप्त करना या राज्य जिसमें नागरिक रहता है वह राजनैतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त करता है| इसे एक विशेष राज्य के व्यक्ति के कानूनी सम्बन्धों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे वह राज्य के प्रति अपनी वफादारी निभाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध रहता है और अपने कर्तव्यों को निभाकर जैसे कर अदा करना, जरूरत के समय सेना की मदद करना, राष्ट्रीय सिद्धांतों और मूल्यों का सम्मान करना आदि आता है
नागरिकता राज्य के एक सदस्य होने के रूप में कानून के तहत मान्यता प्राप्त एक व्यक्ति की स्थिति है| हालांकि, 1955 का नागरिकता अधिनियम तथा इसके संशोधन संविधान के प्रारम्भ होंने के बाद नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति के साथ संबंध रखते हैं| इसके अलावा, संविधान ने विदेशों में रेह रहे भारतियों (OCI’s) तथा अनिवासी भारतीय नागरिक (NRI’s) और भारतीय मूल के लोगों (PIO’s) को नागरिकता के अधिकार प्रदान किए हैं|
संसद के कानून द्वारा नागरिकता को विनियमित करने के लिए संविधान सभा अनुच्छेद 11 के माध्यम से एक सामान्यीकृत प्रावधान शामिल किया गया। हालांकि, जब इस संविधान को अपनाया गया, तब अनुच्छेद 5-11 रूप में नागरिकता के संविधान भाग 2 लागू किया गया जोकि निम्न प्रकार से उल्लेख करता है :
अनुच्छेद 5 के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति” जो भारत के क्षेत्र में रहता है और
• जो भारत के क्षेत्र में पैदा हुआ था या
• जिसके माता पिता भारत के क्षेत्र में पैदा हुए थे या
• कम से कम 5 साल के लिए भारत के सामान्य नागरिक रहें तुरंत इस प्रक्रिया के आरंभ होने के बाद भारत का नागरिक बन सकता है|
अनुच्छेद 6- कुछ भारतियों को नागरिकता का अधिकार जो पाकिस्तान से भारत आ गए हैं उन्हें संविधान के प्रारंभ में नागरिकता के तहत शामिल करना|
अनुच्छेद 7- नागरिकता का अधिकार कुछ पाकिस्तानी प्रवासियों के लिए – ये उन लोगों के लिए विशेष प्रावधान है जो मार्च 1, 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए परंतु बाद में भारत लौट आए थे
अनुच्छेद 8- ये नागरिकता का अधिकार उन व्यक्तियों के लिए है जो भारतीय मूल के होते हुए भारत से बाहर रोजगार, शिक्षा, और शादी या अनुच्छेद 8 के आगे रख देने के उद्देश्य से दिया गया है|
अनुच्छेद 9– वह व्यक्ति जो स्वेच्छा से विदेशी राज्य की नागरिकता हासिल करता है, वह भारत का नागरिक नहीं होगा|
अनुच्छेद 10– वह व्यक्ति जो भारत का नागरिक है इस भाग के किसी भी प्रावधान के तहत, जो संसद द्वारा बनाया गया हो के अधीन होगा|
1955 का नागरिकता अधिनियम 1955 और इसका संशोधन
1. 1955 का नागरिकता अधिनियम — संविधान के प्रारंभ होने के बाद नागरिकता का अधिग्रहण और समाप्ति से संबन्धित है।
• वह व्यक्ति जो 26 जनवरी 1950 के बाद भारत में पैदा हुआ हो, वह भारत का नागरिक हो सकता है लेकिन राजनायिकों के बच्चे भारत के नागरिक नहीं हो सकते|
• 26 जनवरी 1950 के बाद पैदा हुए कोई भी व्यक्ति नागरिक तभी कहलाएगा जब वह कुछ शर्तों को पूरा करेगा जैसे या तो माता पिता भारत के नागरिक हों, या पिता नागरिक हो आदि|
• कुछ विदशी कुछ शर्तों को पूरा करके द्वारा भारतीय नागरिकता हासिल कर सकते हैं|
• यदि कोई भी क्षेत्र भारत का हिस्सा बन जाता है, भारत सरकार उन्हें नागरिक बनने के लिए शर्तों को निर्दिष्ट कर सकता है|
• नागरिकता कुछ आधारों जैसे पर त्याग, वर्खास्त्गी, आदि से खो सकती है|
• एक राष्ट्रमंडल देश के नागरिक को भारत में राष्ट्रमंडल नागरिकता का दर्जा दिया जाएगा।
2.1986 का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम—यह अधिनियम विशेष रूप से असम राज्य की नागरिकता से संबंधित है। इसमें उल्लेख किया गया है कि यह नागरिकता पाने के लिए अवैध प्रवासियों को निर्धारित प्रारूप में भारतीय वाणिज्य दूतावास के साथ पंजीकृत होने की जरूरत है|
3. 1992 का नागरिकता(संशोधन ) अधिनियम—इस अधिनियम के अनुसार, भारत के बाहर पैदा हुए किसी भी व्यक्ति को वंश परंपरा के द्वारा नागरिकता मिल सकती है यदि उसके माता-पिता दोनों में से कोई भी अपने जन्म के समय भारत के नागरिक रहे हों|
4. 2003 का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम—यह अधिनियम अधिकारों का परिचय देता है जिसमें उनके पंजीकरण से संबन्धित विदेशी नागरिकों के लिए प्रावधान दिये गए हैं|
5. 2005 का नागरिकता अधिनियम – यह अधिनियम गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के आधार निर्भर करता है। यह PIO’s के 16 देशों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान प्रदान करता है।
नागरिकता के अधिग्रहण की विधियां
1. जन्म के द्वारा -इस धारा के तहत नागरिकता का अनुदान संशोधन के अनुसार उस जगह के समय के अनुसार परिवर्तन के अधीन है।
2. नागरिकता, पंजीकरण के द्वारा प्राप्त की जा सकती है|
3. वंश के आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है|
4. देशीकरण द्वारा भी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है|
5. किसी क्षेत्र के अपने देश में समावेश द्वारा भी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है|
नागरिकता का खो जाना
1955 का नागरिकता अधिनियम नागरिकता के खो जाने के साथ साथ अधिग्रहण करने के प्रावधानों के बारे में भी बताता है:
1. त्याग के द्वारा -किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार नागरिकता का त्याग करने की घोषणा करना, जिससे उससे भारत की नागरिकता ले ली जाये|
2. निष्कासन के द्वारा – यदि एक व्यक्ति स्वेच्छा से जानबूझकर किसी भी अन्य देशका नागरिक बन जाता है।
भारत के विदेशी नागरिक
2003 की नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के अनुसार भारत के विदेशी नागरिक में वह व्यक्ति भी शामिल है
• भारतीय मूल का नागरिक होने के बाद किसी और देश का नागरिक हो जाने वाला व्यक्ति (PIO)
• दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करने के तुरंत बाद भारत का नागरिकता छोड़ देनी तथा केंद्र सरकार द्वारा OCI के रूप में पंजीकृत कराना|
अनिवासी भारतीय
एक NRI भारत का नागरिक होता है जिसके पास भारतीय पासपोर्ट होता है और अस्थायी रूप से या तो रोजगार या शिक्षा या इस तरह के किसी भी अन्य कारण से अन्य देश में आकर बस जाता है|
भारतीय मूल के व्यक्ति
जिनके माता-पिता या दादा-दादी भारत के नागरिक हैं लेकिन वह भारत का नागरिक नहीं है, क्योकि वह किसी दूसरे देश का नागरिक है परन्तु माता-पिता भारतीय मूल के होने के कारण वह भी भारतीय नागरिक कहा जायेगा ।
नागरिकता का मुद्दा एक लोकतांत्रिक राष्ट्र राज्य के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसलिए नागरिकता एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण नींव है