सौम्य सवेरा
छंद-मनहरण घनाक्षरी
सूरज का उग्र रूप, ग्रीष्म की प्रचंड धूप,
अच्छे-अच्छे गोरों का भी,
रंग हुआ साँवला!
घर में न बाहर में,चैन न दोपहर में,
शीत छाँह खोजने को,
मन है उतावला!
आम नीम सीना तान,चुपचाप सावधान,
पेड़-पौधे डोले नहीं,
शांत खड़ा आँवला!
जंतुओं की चतुराई,पत्तों बीच अमराई,
छुप कर बैठा वत्स,
बंदर वो बावला!– राजेशपाण्डेवत्स,डभरा,छग.