Friday, July 25, 2025
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संयम, सदाचार और अनुशासन का अभ्यास है कावड़ यात्रा- मनोज गौतम

महेंद्रगढ़,23 जुलाई (परमजीत सिंह/शैलेन्द्र सिंह)।

भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा, आस्था और समर्पण का प्रतीक है कावड़ यात्रा -मनोज गौतम


शिवरात्रि पर बाघोत में चल रहा है विशाल मेला

उपमंडल कनीना के गांव बाघोत में आज शिवरात्रि पर मेला लगा हुआ है। मंदिर एवं शिवलिंग पौराणिक महत्व एवं अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है। लाखों भक्त यहां दर्शनार्थ के लिए आते हैं। बाघोत पहुंचने के लिए कनीना-चरखी दादरी मार्ग पर 15 किमी दूरी पर स्थित बाघोत गांव में मुख्य सड़क मार्ग के पास ही शिवालय स्थित है।चरखी दादरी से भी शिवालय पहुंचा जा सकता है। पिछले कुछ दिनों से कावड़ चढ़ाने का सिलसिला जारी है यहां कई हजारों की संख्या में कावड़ चढ़ाई जाती हैं।श्रद्धालु भगवान शिव में अटूट श्रद्धा और आस्था को लेकर गंगाजल चढ़ाते हैं।हरिद्वार,गंगोत्री से कावड़ लेकर आते हैं।

कावड़ चढ़ाने वाले भक्त मनोज गौतम ने बताया कि कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक तो है ही साथ-साथ आत्मअनुशासन और धैर्य का अभ्यास भी करवाती है। सदाचार,आध्यात्मिकता और धार्मिकता का अध्याय है कावड़ यात्रा।
सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक कावड़ यात्रा संस्कृतियों से सामंजस्य का माध्यम भी है। दूसरी तरफ कावड़ यात्रा व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मजबूती प्रदान करती है। पर्यावरण के प्रति लगाव और मन को प्रसन्नता देने वाली इस यात्रा के बहुत से लाभ है। निश्चित रूप से कांवड़ यात्रा संयम ,सदाचार और अनुशासन का अभ्यास है।

इतिहास :

बाघोत का मंदिर करीब 1680 वर्ष पुराना है। इस शिवालय के पास खड़े कदंब के पेड़, तालाब एवं स्वयंभू शिवलिंग ऋषि मुनियों की तप स्थली होने की याद दिलाते हैं।भगवान श्रीराम के पूर्वजों ने भी यहां तप किया था। वर्ष में दो बार मेला लगता है। तत्कालीन समय में राजा दलीप को शिव ने बाघ के रूप में दर्शन दिए थे, जिसके चलते गांव का मंदिर बाघेश्वरी धाम कहलाया। शिवालय का निर्माण कणाणा के राजा कल्याण ¨सह रैबारी ने करवाया था।

तैयारियां:

बाघोत में शिवरात्रि के मेले की तैयारियां चल रही हैं। मंदिर को सजाया जा रहा है।
बताया जाता है कि कणाणा के महाराज कल्याण ¨सह रैबारी द्वारा निर्मित शिवालय पर ऊंटों की कतार 1990 के दशक तक बनी हुई थी, किंतु बाद में इस शिवालय का जीर्णोद्धार हुआ तो उस पर ऊंटों की कतार के चित्र नहीं बने हैं। ऊंटों की कतार की तस्वीर बनाने के पीछे महाराजा के ऊंटों के सोने चांदी को लूटने की घटना एवं शिव भोले के दृष्टांत के बाद पुन: प्राप्ति की याद को ताजा करते हैं। ये तस्वीर शिवालय का पूरा हाल वर्णित करती है। शिवालय एवं समीप मंदिर-बाघेश्वरी धाम का मुख पूर्व दिशा की ओर है। इस शिवालय में स्वयंभू शिव ¨लग स्थित है, जो प्राचीन इतिहास की याद दिलाता है। जलाभिषेक करना चाहते हैं वे बाघेश्वरी धाम आते हैं उन्हें पूर्व दिशा में मंदिर से करीब 200 गज दूरी पर कतार में खड़ा होना होता है। कतार दक्षिण को मुड़कर पश्चिम की ओर जाने पर शिव¨लग के दर्शन होते हैं। बाघेश्वरी धाम पर जाने वाले भक्तजन अपने साध गंगाजल, पेठा, बेलपत्र के पत्र, नारियल, केला, फल एवं फूल ले जाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन फाल्गुन माह की कृष्ण त्रयोदशी को भी बड़ा मेला लगता है। इस मेले में पुलिस का व्यापक प्रबंध होता है, वहीं दवा मुफ्त उपलब्ध होती हैं एवं भंडारे लगते हैं।अपार भीड़ विशेषकर महिलाएं व्रत धारण करके यहां जल अर्पित करने आते हैं।

”बाघेश्वरी धाम पर हजारों वर्षो से भक्तजन स्वयंभू शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। उनकी आस्था अपार है। यहां का शिवलिंग स्वयंभू होने के कारण भी इसके प्रति लोगों में आस्था अधिक हैं। भगवान श्रीराम के पुरखों से लेकर आज तक इस स्वयंभू शिवलिंग़ के प्रति आस्था बढ़ती ही जा रही है। भक्तजन यहां गंगाजल, दूध एवं जल से अभिषेक करते हैं और फल-फूल चढ़ाते हैं।
-मंदिर पुजारी

”बाघोत स्थित शिव धाम में महाशिव रात्रि पर भारी संख्या में श्रद्धालु नर-नारियां आते हैं। उनकी पूजा-अर्चना के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं।
पुलिस की सुरक्षा मांगी गई है। भक्तजनों की लाइनें लगवाकर सुरक्षित ढंग से शिव के दर्शन कराए जाएंगे।
_प्रधान मंदिर कमेटी

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