महेंद्रगढ़, 29 जुलाई (परमजीत सिंह/शैलेन्द्र सिंह)।
इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर के छात्र कल्याण विभाग द्वारा आज कारगिल विजय दिवस आयोजित किया गया जिसके मुख्य अतिथि प्रसिद्ध समाजसेवी एवं शहर के किशन लाल कॉलेज के पूर्व शिक्षक प्रोफेसर डीपी भारद्वाज रहे।
इस अवसर पर रेवाड़ी शहर के अंतर्गत आसपास के गांव से बुलाए गए 32 पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर असीम मिगलानी ने की और कुलसचिव प्रोफेसर दिलबाग सिंह विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम का आरंभ पौधारोपण एवं रेवाड़ी जिले के धमलावास गांव से कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद कमांडेंट सुखबीर सिंह यादव की प्रतिमा पर पुष्पार्पण के साथ किया गया। इसके अतिरिक्त छात्राओं अंजना एवं अंजलि के द्वारा देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम के आरंभ में सभी का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर दिलबाग सिंह ने कहा कि हमें शहीदों की कुर्बानी को याद रखने की आवश्यकता है। कारगिल जैसी विषम परिस्थितियों में हमारे वीर सैनिकों ने जो शौर्य दिखाए वह सभी के लिए प्रेरणादायक है। हमें अपने जीवन में इसे उतारना चाहिए और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।
कुलपति प्रोफेसर असीम मिगलानी ने कहा कि देश शहीदों के बलिदान को नहीं भूल सकता और आज हमारी सरकार आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए हैं। न केवल कारगिल बल्कि उसके बाद भी ऑपरेशन सिंदूर में हमारे सैनिकों ने अपना जोश और ताकत दिखाई है और स्वदेशी हथियारों का उपयोग करते हुए दुश्मन को धूल चटाई है। आज हमारा देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। हम आज हथियारों के मामले में भी आत्मनिर्भर बन रहे हैं और इनका स्वयं निर्माण करके दूसरे देशों को भी निर्यात कर रहे हैं । हम देशवासियों का यह फर्ज बनता है कि हम सच्चे मन से और मेहनत एवं ईमानदारी के साथ कार्य करते हुए अपने देश को आगे बढ़ाएं।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर डीपी भारद्वाज ने कहा कि हमें राष्ट्रीय प्रथम की भावना रखने वाले वीर सपूत जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। कारगिल के साथ-साथ उन्होंने रेजांगला युद्ध में यहां के वीरों द्वारा लिखी गई शौर्य गाथा को याद किया। उन्होंने कहा कि आज कुछ नई चुनौतियां हमारे सामने मुंह उठाकर खड़ी है जैसे पर्यावरण प्रदूषण पॉलीथिन प्लास्टिक रासायनिक खाद आदि हमें आज इन चुनौतियों पर भी विजय प्राप्त करके विजय दिवस मनाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि सीमा पर खड़े हुए एक सैनिक की अपनी कोई व्यक्तिगत पहचान जाति अथवा धर्म नहीं होता। उसकी केवल यह पहचान होती है कि वह देश का सैनिक है और इसी भावना के साथ वह अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता है। इसलिए जाति विभिन्न समाज का सबसे बड़ा उदाहरण देखना है तो वह हमारी सेवा में नजर आता है जिसमें हम सब का केवल एक धर्म और जाती है वह यह कि हम सब भारतीय हैं। कुलपति, कुलसचिव एवं मुख्य अतिथि ने उपस्थित पूर्व सैनिकों को स्मृति चिन्ह भेंट करके उनका सम्मान किया।
विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रोफेसर करण सिंह ने कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद किया।
कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जागीर नागर के द्वारा किया गया जबकि इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. बीरेंद्र सिंह ने कार्यक्रम समन्वयक की भूमिका निभाई।