Wednesday, August 6, 2025
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हकेवि ने रेडी-टू-सर्व ड्रिंक के लिए किया तकनीकी लाइसेंस समझौता

सीधे उत्पादकों के साथ मिलकर करेंगे काम

महेंद्रगढ़ 1 अगस्त (परमजीत सिंह/शैलेन्द्र सिंह)।

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ द्वारा कचरी आधारित रेडी-टू-सर्व (आरटीएस) पेय उत्पाद की तकनीक हेतु मैसर्स आरसीआईसीओ लिवेबल सेवन ब्लू रिफॉर्म फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, झज्जर के साथ समझौता किया है। इसके अंतर्गत दोनों संस्थानों के बीच टेक्नोलॉजी लाइसेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। एग्रीमेंट पर हकेवि की ओर से विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेशवर कुमार ने तथा लिवेबल सेवन ब्लू रिफॉर्म फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड की ओर से निदेशक श्री संजय जाखड़ ने हस्ताक्षर किए। यह समझौता पोषण एवं स्वास्थ्य से जुड़ी नवीन और सतत खाद्य तकनीक को समाज और उद्योग तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा कि यह समझौता विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधान आधारित समाधान को व्यवहारिक स्वरूप में लाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पोषण जीवविज्ञान विभाग द्वारा विकसित यह कचरी आधारित रेडी-टू-सर्व पेय उत्पाद न केवल किसानों को लाभ देगा, बल्कि उद्यमियों को भी इससे नया उत्पाद विकसित करने का अवसर उपलब्ध कराएगा। विश्वविद्यालय के समकुलपति प्रो. पवन कुमार शर्मा ने कहा कि स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाली फसल का इस तरह से उपयोग एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस पहल से किसानों एवं उद्यमियों के लिए उत्पादन और मूल्य संवर्धन के नए अवसर उपलब्ध होंगे।
आरसीआईसीओ लिवेबल सेवन ब्लू रिफॉर्म फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड की ओर से निदेशक श्री संजय जाखड़ ने कहा कि हमें हकेवि के साथ साझेदारी कर प्रयोगशाला से बाजार तक इस नवाचार को लाने का अवसर मिला है। कचरी जैसी फसल जो अक्सर बर्बाद हो जाती है, उसे वैज्ञानिक रूप से उपयोग कर पेय उत्पाद बनाना खाद्य उद्योग के लिए एक वरदान साबित होगा। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने कहा कि यह समझौता इस बात का साक्ष्य है कि कैसे विश्वविद्यालयों की शोध क्षमता व्यवहारिक जरूरतों की पूर्ति में मददगार हो सकती है। इस तकनीक के लाइसेंस के माध्यम से किसान उत्पादक कंपनी द्वारा इसका व्यवसायीकरण जल्द ही संभव होगा।
विश्वविद्यालय की ओर से पोषण जीवविज्ञान विभाग की डॉ. अनीता कुमारी व सूक्ष्मजीवविज्ञान विभाग के प्रो. सुरेंद्र सिंह एवं डॉ. दीपिका ने इस तकनीक का आविष्कार किया है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने के कारण फंक्शनल फूड और वैल्यू एडेड उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। कचरी आधारित यह पेय उत्पाद उपभोक्ताओं की स्वाद और गुणवत्ता की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है और लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
हकेवि की रिसर्च एंड डेवलपमेंट डीन प्रो. नीलम सांगवान ने कहा कि इस तरह की साझेदारियां तकनीक हस्तांतरण और नवाचार के व्यावसायीकरण में सहायक होती हैं। हमारी शोध प्रणाली इसी उद्देश्य से तैयार की गई है कि समाज को सीधा लाभ मिले। पोषण जीवविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश कुमार ने बताया कि विभाग द्वारा अन्य तकनीकों पर भी कार्य किया जा रहा है, जिन्हें शीघ्र ही हस्तांतरण के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। एसआईएएस संकायाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार गुप्ता ने विभाग एवं शोधकर्ताओं को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी। इस अवसर प्रो. कान्ति प्रकाश शर्मा सहित विभिन्न विभिागों के शिक्षक, शोधकर्ता एवं किसान उत्पादक कंपनी के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। यह ‘स्वस्थ भारत’ पहल के अंतर्गत पोषण, स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।
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