हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय को ‘कचरी स्प्रेड‘ पर मिला राष्ट्रीय पेटेंट

महेंद्रगढ़, 25 अगस्त (परमजीत सिंह/शैलेन्द्र सिंह)।

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय, नई दिल्ली द्वारा ‘कचरी स्प्रेड‘ पर राष्ट्रीय पेटेंट प्रदान किया गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेशवर कुमार ने इस उपलब्धि पर आविष्कारकों को बधाई देते हुए कहा कि स्थानीय फसलों का उपयोग एवं उनका संवर्धन ’फंक्शनल फूड’ के रूप में न केवल क्षेत्रीय समुदाय के लिए वरदान है, बल्कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह प्रयास समाजहित में सामुदायिक शोध को बढ़ावा देने वाला उत्कृष्ट प्रमाण है।
विश्वविद्यालय के समकुलपति प्रो. पवन कुमार शर्मा एवं कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने भी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि किसानों और उद्यमियों के लिए उत्पादन एवं उपयोग के नए अवसर उत्पन्न करेगी। यह पेटेंट विश्वविद्यालय के पोषणजीव विज्ञान विभाग को प्रदान किया गया है। यह किसानों एवं उद्यमियों को इस उपेक्षित फसल को ’स्प्रेड’ के रूप में उपयोग करने का अवसर प्रदान करेगा।
इस शोध को पोषणजीव विज्ञान विभाग की डॉ. अनीता कुमारी और डॉ. दीपिका तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग के प्रो. सुरेंद्र सिंह ने संयुक्त रूप से विकसित किया। शोधकर्ताओं ने बताया कि कचरी हरियाणा क्षेत्र में उगाई जाने वाली एक लो-इनपुट एवं कम प्रयोग में लाई जाने वाली फसल है, जिसमें अनेक पोषक एवं औषधीय गुण विद्यमान हैं। उन्होंने बताया कि अंतरविषयी अनुप्रयुक्त शोध के परिणामस्वरूप यह आविष्कार संभव हुआ है। कचरी की फसल प्रायः जागरूकता की कमी, अपहचाने पोषण मूल्य, स्वाद एवं सुगंध के प्रति अस्वीकृति तथा वैज्ञानिक जानकारी के अभाव के कारण नष्ट हो जाती है। इस प्रयास में कचरी को ’स्प्रेड’ जैसे बहुप्रचलित खाद्य उत्पाद के रूप में विकसित किया गया है।
विश्वविद्यालय की अनुसंधान एवं विकास अधिष्ठाता प्रो. नीलम सांगवान ने भी शोधकर्ता टीम को बधाई देते हुए कहा कि प्रयोगशालाओं में किया गया यह शोध शीघ्र ही आमजन के घरों तक पहुँचेगा। इसी क्रम में डीन एसआईएएस प्रो. दिनेश कुमार गुप्ता एवं निदेशक सीआईआई प्रो. सुनीता श्रीवास्तव ने भी इस अभिनव, अनुप्रयुक्त एवं समाजोन्मुखी शोध के लिए टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह पहल सरकार की ’स्वस्थ भारत’ की परिकल्पना के अनुरूप है, जो स्वास्थ्य, पोषण एवं आर्थिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने में सहायक होगी। पोषणजीव विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश कुमार ने भी शोधकर्ता टीम को इस महत्वपूर्ण तकनीक के विकास हेतु किए गए प्रयासों के लिए बधाई दी।

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