रेवाड़ी, 26 जुलाई (परमजीत सिंह /राजू यादव)।
इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर, रेवाड़ी में लोक पर्व ‘हरियाली तीज’ के उपलक्ष्य में हिंदी विभाग और छात्र कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम समन्वयक प्रोफेसर अदिति शर्मा के संयोजन में ‘आओ अपनी लोक संस्कृति को जाने’ कार्यक्रम के अंतर्गत ‘हरियाली तीज उत्सव’ को धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम समन्वयक एवं निदेशक छात्र कल्याण प्रोफेसर अदिति ने सभी का स्वागत अभिनंदन करते हुए कहा कि आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम हमारी लोक संस्कृति, परंपराओं और रीति रिवाजों से दूर होते जा रहे हैं। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियां को, युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ने के लिए इस तरह के लोक पर्वों के वास्तविक रूप से अवगत कराना बहुत जरूरी हो गया है। उन्होंने इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण केंद्र झूला और डीजे पर सावन के लोकगीतों को बताया। उन्होंने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रोफेसर सीमा मिगलानी, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर पूनम को प्रकृति का श्रृंगार-पौधा देकर स्वागत अभिनंदन किया। छात्राओं ने पुष्प वर्षा के साथ चंदन रोली का टीका लगाकर सावन गीत ‘कच्चे नीम की निंबोली’ गाकर स्वागत अभिनंदन किया।
हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मंजु पुरी ने कहा कि – हम चाहे कितने ही आधुनिक हो जाएं हमें अपनी पहचान को नहीं छोड़ना चाहिए। हम सब लोक संस्कृति में पले बढ़े हैं। यही हमारी भारतीयता की सबसे मजबूत कड़ी है। जो विविधता को एकता में बांधे रखती है।
इस अवसर पर मेहंदी प्रतियोगिता और मटका सजावट प्रतियोगिता का आयोजन डॉ. अर्चना यादव, डॉ. शकुंतला, श्रीमती कुसुम के संयोजन में कराया गया। मेहंदी प्रतियोगिता के विषय ‘मेहंदी एक श्रृंगार – सदा सुहागन’ की उदघोषणा करते हुए-प्रोफेसर सविता शयोराण ने कहा कि- इस तरह के कार्यक्रम हम सबको एक दूसरे के साथ मिलकर पर्व उत्सव मनाने की प्रेरणा देते हैं। मुख्य अतिथि प्रोफेसर सीमा मिगलानी ने सभी को तीज पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि- सावन में हरी भरी वसुंधरा को देखकर मन मयूर नाच उठता है। प्रकृति के श्रृंगार का पर्व लोक उत्सव हरियाली तीज सभी के मन को भाव विभोर कर देता है।लोक संस्कृति लोक की बानी रहन-सहन खान-पान तीज त्यौहारों की धमक, लोक की माटी में रची बसी गंध, लोकमानस के हृदय को अनंत काल तक निर्मल उज्ज्वल करती आई है। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर पूनम ने कहा कि- अनंत काल से समाज में गाए जाने वाले लोकगीत आज भी मानव कंठ के कंठ हार बने हुए हैं किंतु पश्चिमी संस्कृति को अपना कर हम डीजे पर फूहड़ और भद्दे गीतों को बजाकर आधुनिक होने का दिखावा करते हैं। यहां यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि डीजे पर सावन के गीत, कोथली गीत, मेघ मल्हार जैसे -‘अम्मा मेरे बाबा को भेजो री’, ‘झूला तो पड़ गए अमवा की डाल पै जी’, बज रहे हैं। पूरे कार्यक्रम को लोक रंग में रंगा गया है। हमें ऐसे ही अपनी लोक संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।
कुलपति प्रोफेसर असीम मिगलानी ने कहा कि आज लोक समाज पश्चिमी संस्कृति के दिखावे के कारण बाजारवाद की चपेट में आकर अपने वास्तविक रुप से दूर होता जा रहा है। ऐसे में हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी परंपराओं, मूल्यों, आदर्शों, संस्कारों को आने वाली पीढ़ी को बताएं जो हमारी धरोहर है, वास्तविक पहचान है। लोकरंग ही हमारी संस्कृति का चटक रंग है।
कुलसचिव प्रोफेसर दिलबाग सिहं ने कहा कि जीवन के राग-रंग का संदेश देता हुआ लोक पर्व हरियाली तीज जहां श्रृंगार का प्रतीक है वहीं हमारी आध्यात्मिकता का संदेश भी देता है। सावन में सारा वातावरण शिवमय हो जाता है। हरियाली तीज उत्सव प्रकृति परंपरा और प्रसन्नता का पर्व है। धार्मिक आस्था के साथ-साथ यह पर्व पर्यावरण, प्रकृति की रक्षा का भी संदेश देता है।
‘मेहंदी एक श्रृंगार-सदा सुहागन’ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मोनिका (एमसीए), द्वितीय स्थान पायल (एमबीए), तृतीय स्थान शिवानी (एमकॉम) ने प्राप्त किया। मटका सजाओ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान गुंजन (एम ए अंग्रेजी), द्वितीय हिमांशी सैनी (बीटेक), तृतीय मुस्कान (एमएससी बॉटनी) ने प्राप्त किया। निर्णायक मंडल की भूमिका प्रोफेसर रश्मि, प्रोफेसर रितु बजाज ने निभाई। प्रतियोगिता में विजेता छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। इस अवसर पर सभी ने हरियाणवी व्यंजन घेवर, गुंझिया का आनंद लिया। झूला-झूले और हरियाणवी गीतों पर धमाल मचाया। इस अवसर पर माननीय कुलपति और कुलसचिव सपरिवार उपस्थित रहे। महिला अध्यापकों ने छात्राओं से मेहंदी लगवाई और उन्हें शगुन के रूप में 100-100 रुपये दिए। कुलपति एवं कुलसचिव ने प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सम्मानित भी किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर जागीर नगर के द्वारा किया गया।
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