महेंद्रगढ़, 3 अगस्त (परमजीत सिंह/शैलेन्द्र सिंह)।
आज आर्य समाज मंदिर महेंद्रगढ़ की पावन यज्ञशाला में साप्ताहिक यज्ञ एवं सत्संग कार्यक्रम का आयोजन वेद प्रचार मंडल जिला महेंद्रगढ़ एवं आर्य समाज के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। यज्ञ कार्यक्रम में पंडित भूपेंद्र सिंह आर्य की अध्यक्षता रही, जबकि यजमान की भूमिका रानी आर्या ने निभाई। यज्ञ का ब्रह्मत्त्व बृहस्पति शास्त्री ने किया।
कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं ने यज्ञ एवं वैदिक परंपराओं की महत्ता पर प्रकाश डाला। डॉ. विक्रांत डागर ने कहा कि प्राचीन ऋषियों ने यज्ञ को केवल धार्मिक क्रिया न मानकर मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धि का साधन माना। यह केवल भौतिक उन्नति का ही नहीं, आत्मिक उन्नयन का भी मार्ग है।
डॉ. प्रेम राज आर्य ने पारिवारिक जीवन में यज्ञ की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रत्येक घर में नित्य यज्ञ करने की परंपरा होनी चाहिए, जिससे धर्म, आध्यात्मिकता और ईश्वरीयता को बल मिले।
डॉ. सुरेंद्र कुमार आर्य ने कहा कि गायत्री महायज्ञ को सभी यज्ञों का सार माना गया है, जो व्यक्ति के आंतरिक और सामाजिक जीवन में संतुलन लाने का कार्य करता है।
भूपेंद्र सिंह आर्य ने ऋग्वेद के प्रथम मंत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि अग्नि को ईश्वर का प्रथम नाम कहा गया है और अग्नि के माध्यम से ही सभी इच्छित वस्तुएं प्राप्त की जा सकती हैं। अग्नि को पुरोहित कहा गया है, जो ईश्वर और भक्त के बीच सेतु का कार्य करती है।
एडवोकेट मानव आर्य ने यज्ञ के आध्यात्मिक पक्ष को समझाते हुए कहा कि अग्नि, ईश्वर का दृश्य प्रतीक है। सत, चित और आनंद से परिपूर्ण ईश्वर को अग्नि के रूप में अनुभव किया जा सकता है। यज्ञ आत्मबलिदान, संयम, परोपकार और करुणा जैसे सद्गुणों को जीवन में अपनाने का प्रेरक माध्यम है।
इस अवसर पर बीर सिंह मेघनवास, एडवोकेट मानव आर्य, महेन्द्र दिवान, डॉ. आनन्द कुमार आर्य, प्रताप सिंह आर्य, सतीश ढांडा और किरोड़ी आर्य ने आहुतियां अर्पित कीं।
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